उट्ठ जा
"थोड़ा रुक जा जरा " कैरि कैरि कै।
भंडी वक्त निकल ग्या सैरि सैरि कै।।
तू सार लग्यूँ छै जैकु रै लाटा,
वू कब कु सरिक ग्या नज़र फेरि कै।।
माना कि अभी तू साधन विहीन छै,
पर मत भूल कि तू गढ़ कु वीर छै।।
तेरा भीतर वों पुरखों को खून रै,
जौंन खल्याण बणै यख डांडा चीर कै।।
नरसिंह, गोरख, दुर्गा और भैरव,
तेरा दगिड़ी नची यख तू कन बिसरेगे ।
इन बात क्या ह्वा कि निष्तेज़ तू ह्वेगे ?
छै कै घंघतोल मा मुखड़ी लूकै कै।।
चल उठ वीरा साहस त कैर जरा,
उठ संकोच से, उच्छहास त भोर जरा।।
सोच विचार कु वक्त नीच अब,
कूद जा रण मा बाजू फड़का कै।।
(विशेश्वर प्रसाद)
"थोड़ा रुक जा जरा " कैरि कैरि कै।
भंडी वक्त निकल ग्या सैरि सैरि कै।।
तू सार लग्यूँ छै जैकु रै लाटा,
वू कब कु सरिक ग्या नज़र फेरि कै।।
माना कि अभी तू साधन विहीन छै,
पर मत भूल कि तू गढ़ कु वीर छै।।
तेरा भीतर वों पुरखों को खून रै,
जौंन खल्याण बणै यख डांडा चीर कै।।
नरसिंह, गोरख, दुर्गा और भैरव,
तेरा दगिड़ी नची यख तू कन बिसरेगे ।
इन बात क्या ह्वा कि निष्तेज़ तू ह्वेगे ?
छै कै घंघतोल मा मुखड़ी लूकै कै।।
चल उठ वीरा साहस त कैर जरा,
उठ संकोच से, उच्छहास त भोर जरा।।
सोच विचार कु वक्त नीच अब,
कूद जा रण मा बाजू फड़का कै।।
(विशेश्वर प्रसाद)
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